Answer :
क) जिस मनुष्य के जीवन में जितने दुख होते हैं, वह उतना ही सबल होकर सामने आता है। क्योंकि दुख विपरीत स्थितियों से जूझने की क्षमता का विकास कर हमारी ऊर्जा को बढ़ा देता है।
ख) लेखक कहता है कि कभी—कभी गर्मियों में बारिश हो जाती है और शीतल वायु मौसम को सुहावना बना देती है। वहीं बरसात के मौसम में बादलों का नामोनिशान तक नहीं रहता। ऐसे ही मनुष्य के जीवन में सुख—दुख भी ऐसे ही आता है। समाज के विकास के लिए मौसम की तरह विरोधी भावों का होना बेहद जरूरी है।
ग) सुख की अनुभूति के लिए दुख की अनुभूति होनी आवश्यक है। एक के अभाव में दूसरे का आनंद नहीं मिल सकता। इसके द्वारा हमारे अंदर की ऊर्जा जागती है। दुखों से कोई भाग नहीं सकता, उनसे जूझना ही पड़ता है। इसीलिये सुख की अनुभूति के लिए दुख का होना बहुत आवश्यक है|
घ) लेखक ने जीवन चक्र के बारे में बताने के लिए साइकिल के पहिए का उल्लेख किया है। लेखक कहना चाहता है कि जिस प्रकार साइकिल के पहिए ऊपर नीचे होते रहते हैं। उसी प्रकार सुख—दुख भी आता—जाता रहता है। जीवन भी एक चक्र की तरह है जो सदा गतिशील रहता है।
ङ) इस गद्यांश में लेखकर ने सुख—दुख के बारे में बताया है। इसलिए इसका शीर्षक “जीवन चक्र” या सुख-दुःख” होना चाहिए।
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Hindi (Course A) - Board Papers