Answer :
‘मोह’ में व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ होता है। इसके विपरीत प्रेम में सात्विकता होती है, वह किसी के प्रति हो सकता है। प्रेम सार्वभौमिक सत्य होता है। इसमें स्वार्थ नहीं अपितु प्रिय का हित चिंतन अधिक होता है।
इसे भगत के जीवन के आधार पर इस प्रकार समझा जा सकता है-
(क) भगत को अपने बेटे से प्रेम है, मोह नहीं, क्योंकि वे बेटे की मृत्यु पर एक मोही व्यक्ति की तरह विलाप नहीं करते हैं, अपितु उनका प्रिय पुत्र इस सांसारिक बंधन से मुक्त हो गया यह मानकर गीत गाते हैं कि आत्मा-परमात्मा से मिल गई। यह तो उनके प्रिय के लिए प्रसन्नता की बात है। यहां तक की अपनी पुत्रवधू को भी खुश होने के लिए बोलते हैं।
(ख) पुत्र की मृत्यु पर उनका पुत्रवधू और अपने बुढ़ापे के सुख का मोह होता तो वे कदापि पुत्रवधू को भाई के साथ पुनर्विवाह के लिए न भेजते। अपने आत्मीय के हित के लिए उनका प्रेम प्रबल हो उठा और उसे मायके भेज दिया। इस घटना द्वारा उनका प्रेम प्रकट होता है। बालगोबिन भगत ने सच्चे प्रेम का परिचय देकर अपने पुत्र और पुत्रवधू की खुशी को ही उचित माना।
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